Dhritarashtra aur Pandu ka Janm – महाराज शान्तनु की दूसरी पत्नी सत्यवती की कोख से जन्मे चित्र-विचित्र काल का ग्रास बन गए। चित्रांगद गन्धर्वो से युद्ध में मारा गया और विचित्रवीर्य ने अपने प्राण वन में जाकर गवा दिए। यह देख सत्यवती बहुत दुःखी हुई उसे चिंता हुई की अब वंश बेल किस युक्ति से आगे बढ़ेगी।
एक दिन सत्यवती ने भीष्म से कहा – “हे पुत्र! तुम धर्मावतार हो अब तुम ही इस वंश की डूबती नाव को किनारे लगा सकते हो। चित्र विचित्र की मृत्यु के पश्चात् काशीराज की दोनों पुत्रियाँ वैध्वय जीवन व्यतीत कर रही हैं। उनकी गोद सुनी है। तुम भारतवंश की रक्षा के लिए इनसे पुत्र उत्पन्न कर अपने गृहस्थ धर्म का पालन करो, या फिर विवाह करके वंश की वृद्धि करो, अन्यथा तुम्हारे अस्त होते ही यह शान्तनु वंश समाप्त हो जायेगा।
भीष्म बोले- “हे माता! यद्यपि अपने धर्मसंगत वचन कहे हैं, तब भी मैं विवश हु मैंने पिताश्री को सदैव ब्रहमचारी रहने का वचन दिया था, अतः मैं अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ने में असमर्थ हूँ। हे माते! वंश बढाने के लिए वेदों की यह आज्ञा है कि ब्राह्मणों से वीर्य दान लिया जा सकता है। अतः किसी गुणी ब्राह्मण के द्वारा पुत्र उत्पन्न कराना उचित होगा।
भीष्म की धर्मसंगत बात सुन सत्यवती ने अपने पुत्र द्वैपायन को बुलाया, तब उनका नाम द्वैपायन से व्यास जी हो चुका था। यह वही थे, जिन्हें सत्यवती ने नाव पर विवाह से पूर्व पाराशर ऋषि से सम्भोग कर उत्पन्न किया था। सत्यवती ने व्यास जी को विचित्रवीर्य की रानियों से पुत्र उत्पन्न करने की आज्ञा दी।
अपनी माता की आज्ञा व्यास जी ने स्वीकार की। इस प्रकार अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पांडु व दासी से विदुर ने जन्म लिया। अम्बिका ने ऋषि को देख नेत्र बंद कर लिए थे, जिस कारण धृतराष्ट्र अंधे पैदा हुए। अम्बालिका का भय से चेहरा पीला पड़ गया था, अतः उनके पुत्र का वर्ण पांडु हुआ। दासी से विदुर का जन्म हुआ था, अतः वे राज्य के उत्तराधिकारी न थे वे भाइयों को मंत्रणा देने के कार्य पर लगे।
धृतराष्ट्र अंधे थे, जिस कारण पांडु राजगद्दी पर बैठने के अधिकारी हुए वे ही राज काज चलने लगे।
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