अहोई अष्टमी का व्रत भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पोस्ट में जानते है अहोई अष्टमी क्यों मनाया जाता है और Ahoi Ashtami Vrat Katha Hindi
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है , इस दिन पुत्रो की माता पुरे दिन व्रत करती हैं। इस दिन सांयकाल तारे निकलने के पश्चात दीवार पर अहोई बनाकर उसकी पूजा की जाती है।
व्रत रखने वाली माताएं भगवन की कहानी सुनती है और कहानी सुनते समय एक पत्ते पर जल से भरा लोटा रखती हैं। एक चांदी की अहोई बनायीं जाती है और दो चांदी के मोती एक डोरे में डलवाते हैं जिस तरह हार में पेंडिल लगा होता है ठीक उसी तरह।
उसकी जगह चांदी की अहोई लगबाकार , डोरे चांदी के मोती में डलवा दिए जाते हैं। फिर अहोई की रोली , चावल , दूध भात से पूजा की जाती है।
जल के लोटे पर एक सतिया काढ़कर एक कटोरे में सीरी और रूपए का बायना निकालकर और सात दाने गेहूं के हाथ में लेकर कहानी सुनी जाती हैं। फिर अहोई को गले में पहन लिया जाता हैं। जो बायना निकाला जाता है उसे महिलायें अपनी सासू जी के पैर छूकर उन्हें प्रदान करती हैं।
अहोई अष्टमी के बाद किसी अच्छे दिन अहोई गले में से उतारकर जिनके बेटे हो उतनी बार और जितने बेटों का विवाह हुआ हो उतनी बार दो चांदी के दाने डालती जाएं। जब अहोई उतारे उसको गुड़ से भोग लगाकर तथा जल के छींटे देकर रख दें। चन्द्रमा को अघर्य देकर भोजन करें। इस दिन ब्राह्मणो को पेठा अवश्य देना चाहिए। अहोई देवी के चित्र के साथ-साथ बच्चे के चित्र भी बनवाये एवं उनकी पूजा करें।
Ahoi Ashtami Vrat Katha in Hindi – अहोई अष्टमी व्रत की कथा ( कहानी )
प्राचीन कल की बात है भारत वर्ष के दतिया नाम के नगर में चंद्रभान नाम का साहूकार रहता था। उसकी पत्नी चन्द्रिका गुड़बान एवं पतिब्रता थी। उसके कोई भी संतान जीवित नहीं रहती थी। वे दोनों दुखी होकर सोचा करते थे कि हमारी मृत्यु के पश्चात इस वैभव का स्वामी कौन होगा ?
एक दिन वे दोनों निश्चय करके घर – धन छोड़कर जंगल में निवास करने चले गए। जब दोनों चलते – चलते थक जाते तो बैठ जाते और फिर चलने लगते। इसी तरह से चलते – चलते वे दोनों बद्रिकाश्रम के निकट एक शील कुंड के पास पहुंचे। वहां पहुँच कर दोनों ने अन्न – जल त्याग दिया। जब उन्हें भूखे प्यासे सात दिन हो गए तो वहां आकाशवाणी हुयी कि तुम लोग अपने प्राण मत त्यागो। यह दुःख तुम्हे पूर्व जन्म के कारण मिला है।
इसलिए ए साहूकार ! अब तुम अपनी पत्नी से अहोई अष्टमी के दिन जो कार्तिक कृष्ण पक्ष को आती है उस दिन व्रत रखवाना। इस व्रत के प्रभाव से अहोई देवी से अपने पुत्रो कि दीर्घायु मांगना। तुम व्रत के दिन रात्रि को राधा कुंड में स्नान करना। कार्तिक कृष्ण पक्ष कि अष्टमी आने पर चन्द्रिका ने बड़ी श्रद्धा से अहोई देवी का व्रत किया एवं रात्रि को साहूकार राधा कुंड में स्नान करने गया। साहूकार जब स्नान करके घर वापस आ रहा था तो रास्ते में अहोई देवी ने साहूकार को दर्शन दिए और बोलीं कि हे साहूकार मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। तुम मुझसे कुछ भी वर मांग लो।
साहूकार अहोई देवी के दर्शन देने पर बहुत ज्यादा प्रसन्न हुआ और उसने अहोई देवी से कहा ,कि मेरे बच्चे काम उम्र में ही देवलोक को चले जाते हैं। कृपया आप उन्हें दीर्घायु होने का आशीर्वाद प्रदान करें। अहोई देवी बोलीं , ऐसा ही होगा। इतना कहकर देवी अंतर्धान हो गयीं। कुछ दिनों के बाद साहूकार के घर एक पुत्र ने जन्म लिया , जो बड़ा होने के बाद विद्वान , बलशाली , प्रतापी और आयुष्मान हुआ।
अहोई अष्टमी का उजमन ( उद्यापन )
अगर किसी स्त्री के पुत्र हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो तो अहोई व्रत का उजमन करें । एक थाली में सात जगह पूड़ी एवं थोड़ा का मीठा रखे। इसके अतिरिक्त एक साड़ी – ब्लाउज और एक रुपया थाली में रखें एवं थाली में चारो ओर हाथ फेरकर पूड़ी का वायना वितरण करें। थाली के चारो ओर जल का हाथ फेरकर अपनी सासू माँ के पैर छूकर उन्हें दें। अगर लड़की कहीं अन्य जगह हो तो उसके लिए वायना वही भेज दें।